अबे ! पलट

“अबे..ओ..पैसे देता है या दूँ एक, साला कब से मन भर के पी नहीं है। बाप की ज़रूरत नहीं समझता नालायक कहीं का। तेरा नाम यत्थू नहीं ‘थू’ होना चाहिये”, इतना कहकर थूक दिया बाप ने यथार्थ यानी यत्थू के ऊपर। बाप शाम से ही नशे में धुत्त था, यत्थू मन मासोजकर ख़ून का सा घूँट पीकर रह गया। कई कई दफ़ा मुँह धोया मगर जाने क्यों उसे ऐसा लगा जैसे सारे ज़माने ने एक साथ उसके ऊपर थूक दिया हो। किसी ने उसे आज तक उल्टा जवाब देते हुए नहीं देखा, जो भी उसे पहचानता है वो कहता है कि उसके बस का नहीं है।

यत्थू के मन में ख़यालों की राजधानी दौड़ने लगी। एक छोटा भाई था, जिसने माँ के गुज़र जाने के बाद अपनी मर्ज़ी से पहले शादी करके अलग घर बसा लिया था। बाप जो कहने को बिजली विभाग का निकाला हुआ कर्मचारी था, मगर था पूरा शराबी ऐसा दोनों भाई मानते थे और बड़ा भाई यत्थू कहने को नाटक-एक्टिंग करता था मगर था बिल्कुल नाकारा, ऐसा छोटे भाई का मानना था।

गहरे सोग में यही सब सोचते-सोचते यत्थू का दम फूलने लगा, साँस उखड़ने लगी तो आँगन से बाहर निकल आया। टीन के एक डब्बे को रास्ते से हटाया और पौरी की साँकल खोलकर गली के कोने तक आ गया। गला घुटना जैसा मालूम हुआ, डॉक्टर का क्लीनिक नज़दीक था। एक दो दिन जाँच हुई तो पता चला कि उसे अस्थमा (दमा) है। डॉक्टर ने बताया, घबराने की कोई बात नहीं है, बस ये इनहेलर हमेशा अपने पास रखे और वक़्त से दवाइयाँ लेता रहे।

यत्थू ने खानापूर्ति में सिर हिलाया और चल दिया, ये जानते हुए कि इतना रुपया-पैसा नहीं है जो पूरी दवाई वाला इलाज हो सके। यत्थू पिछले दस साल से नाटक मंच और एक्टिंग में चप्पल घिस रहा है, मगर कोई मुँह नहीं लगाता, न ज़माना, न बाप और भाई। दुनिया की याददाश्त हमेशा से कमज़ोर रही है, सो गली मुहल्ले वाले भी अब उसे भूलने लगे हैं।

एक दिन चप्पल से कंकड़ मारता हुआ अपने ख़यालों में डूबा सड़क किनारे चला जा रहा था, तभी किनारे बैठे एक पीर-फ़कीर को देखकर रुक गया। गला जो भरा हुआ था, अंदर निगला और गला साफ़ करते हुए नीचे झुककर बोला, “बाबा, मेरा वक़्त कब पलटेगा ?”
फ़कीर ने आँखें गढ़ाकर देखा और रहस्यमयी अंदाज़ में बोला, “अगर तू चाहता है कि दुनिया तेरे लिए पलटे, तो तू ऐन वक़्त पे कभी मत पलटना, बस डटे रहना”। फ़कीर ने मुस्कुराकर आँखें बंद करलीं।

दो-चार दिन बाद, शाम के आठ बजे अचानक उसे नाटक कंपनी के एक पुराने जानकार का फ़ोन आया, किसी फ़िल्म में रोल के लिए। फ़ौरन दफ़्तर आकर मिलने को बोला। पहुँचा तो डायरेक्टर ने टेढ़ी निगाह से ऊपर से नीचे देखा और उछल कर बोला, “आजा आजा, नाम क्या बताया था इसका…हाँ ! यथार्थ, गणपति बप्पा का आशीर्वाद है तेरे को, पूरे तीन मिनट का रोल है। ये असिस्टेंट से सीन और डॉयलॉग की कॉपी ले-ले और घर से प्रैक्टिस करके आ, कल सेट पे मिल। अभी इधर दूसरा सीन शूट हो रहा है, तू जा”।
यत्थू की आँखें चमक गयीं, होठों पे दो बार जीभ फिरायी, घबराहट निगली और हाथ जोड़ कर सिर हिला दिया। यत्थू मुड़कर जाने लगा तो डायरेक्टर ने पीछे से टोका, “शीशे में देखकर रिहर्सल भी कर लेना।”

यत्थू कदम तेज़ी से पटकने लगा, कागज़ की तह बना हाथ में दबाता हुआ, फ़ौरन घर पहुँचा। चौखट पे कदम रखा ही था कि बाप लड़खड़ाता हुआ सामने आ गया। इस दफ़ा तो बाप ने मानो मुँह में कीचड़ भर रखी थी। चिल्लाकर बोला, “कमाया धमाया कुछ ?…या बस आ गया मुँह उठाकर.. तू मर क्यूँ नहीं जाता रे या फिर कम से कम घर में अच्छी औलाद होने की एक्टिंग ही ढंग से कर ले, पर वो भी तो नहीं आती तुझे। साला…कूड़ा है तू कूड़ा”। यत्थू के हाथ में कुछ काग़ज़ जैसा दबा देखकर उसने झपट्टा मारा, यत्थू ने भी दम लगाया और छीना-झपटी हुई। आख़िरकार यत्थू ने बाप को कुहनी से धक्का देकर गिरा ही दिया। मगर कागज़ बाप के हाथ में था। बाप ने गुस्से में बिना देखे, सीन और डॉयलॉग लिखे हुए कागज़ को फाड़कर टुकड़े टुकड़े किये और यत्थू के मुँह पे दे मारे।

यत्थू के अंदर का लावा उबलने लगा। उसकी दाँती भिंचने लगी, आँखों में ख़ून उतर आया। गुस्से में दरवाज़े की तरफ़ मुड़ा और जाने लगा। जाते-जाते उसे कोने में पड़े टीन के डब्बे में और ख़ुद में ज़्यादा फ़र्क नज़र नहीं आया। दरवाज़े की ज़ोरदार “धड़ाक” ने उसकी चिल्लाहट बयान कर दी। रात कहीं बाहर ही गुज़ारी और सुबह शूटिंग सेट पे पहुँचा। पहला बड़ा मौका ऐसी बेवकूफ़ी की बात से कहीं चला न जाये इसलिए गर्दन झुकाये झेंपता सा पहुँचा।

डायरेक्टर माइक पे चिल्लाया, “ऑल सेट ? हाँ भाई यथार्थ..तुम तैयार हो, जाओ अपनी दुकान पे बैठो”। यत्थू को कुछ समझ नहीं आ रहा था, डर से कुछ बोले तो बोले कैसे। बस हकबकाया सा आँखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा।

डायरेक्टर खीझ गया, “अरे भाई, क्या दिक्कत है तुमको ? क्या समझ नहीं आ रहा? तुम्हारी छोटी सी दुकान है, हीरो तुम्हारे यहाँ अक्सर आता जाता है, उसके आने जाने की ख़बर है तुमको। इसका पता चार गुंडों को लग गया है। तुम्हारे पास आयेंगे, तुम्हें धमकाएँगे। तुम दमा के मरीज़ हो, एक दो फ़ाइट सीन के बाद ये तुम्हारा इनहेलर छीन के तुम्हें तड़पायेंगे… बस!”
बीच में ही डायरेक्टर गला फाड़ के पीछे मुड़कर चिल्लाया, “और प्रॉप टीम को बोलो, इनहेलर कहाँ है, मँगाया क्यों नहीं अब तक”।
बर्फ़ सा ठंडा पड़ा यत्थू को कुछ याद आया, वो हरकत में आया और फ़ौरन जेब से अपना इन्हेलर निकाल कर आगे बढ़ा दिया। डायरेक्टर ज़रा सा ख़ुश हुआ, “ये देखो, इसे कहते हैं असली लगन। अपने सीन की प्रैक्टिस का सब सामान साथ…शाबाश….चलो चलो चलो.. अब…लाइट्स, कैमरा, एक्शन !!”

“बोल साले, विजय यहाँ कब-कब आता है, बोल नहीं तो जान से मार दूँगा”
“मुझे छोड़ दो, मुझे नहीं पता, उसका कोई हिसाब नहीं है”

सीन के हिसाब से गुंडों ने उसे कॉलर से पकड़ा और ज़मीन पे पटक दिया। मगर उसकी साँस चढ़ने लगी। दूसरे गुंडे ने सिगार का टुकड़ा मुँह ने निकालकर उसकी शर्ट पे फेंका और एक चांटा जड़ा। छीना-झपटी में इनहेलर बाहर गिरना था, गिर गया। गुंडों ने लपककर उठाया, और उसे तड़पाने लगे।

“बताता दे वरना तेरा वो हाल करूँगा कि तेरे ख़ुद के घरवाले भी तुझे नहीं पहचानेंगे ”

ये बात अचानक यत्थू के कानों से होकर दिल में कहीं भीतर जा लगी। पिछली रात का वाक़या वो भूला नहीं था। वो सीन में ज़मीन पे पड़ा घिसट रहा था। उसकी साँस उखड़ रही थी, वो एक हाथ उठाकर इनहेलर माँगने लगा। झनझनाते हुए हाथ जोड़ता गिरता-पड़ता बिलखने लगा।

“पहले बता विजय यहाँ कब आयेगा, बोल…साले..बोल”

यत्थू का चेहरा पसीने से लथपथा गया। होंठ काँपने लगे, आँखें पीछे झुकने लगी। अपनी ही धड़कन कानों में गूँजने लगी। अचानक एक बरीक़ लम्हे के लिए बदन हल्का हुआ, उसे उसकी माँ नज़र आयी, और फिर वो पीर-फ़कीर मुस्कुराता दिखा। एक हिचकी भरी और औंधे मुँह निढाल हो गया।

“कट ! माइंड ब्लोइंग परफॉर्मेंस…यथार्थ”

सेट पे तालियाँ और वाह वाह गूँज उठी। डायरेक्टर ने कुर्सी पे बैठे-बैठे आवाज़ लगायी, “पलट भाई, अब तो पलट जा”। मगर यत्थू नहीं पलटा।

Cut to: Fade in from Black

एक बड़े ऑडिटोरियम में स्पॉटलाइट के साथ एक अजनबी चेहरा और हाथ में माइक।
“जिस रूप में हम चाहते हैं कि ज़िन्दगी हमें गले लगाये, उसके लिये ज़िन्दगी चाहती है हमसे….एक पूरी ज़िन्दगी”।
एंड बेस्ट कैमियो परफॉर्मेंस अवार्ड जाता है…स्वर्गीय….और फिर तालियों और सीटियों ने ऑडिटोरियम को ढक लिया।

— A short story by Prashant ‘Bebaar’

 

Note: The above story is registered with Screenwriters Association of India, Mumbai. Unsolicited use will be considered as copyright infringement.

ⓒ Prashant Bebaar 2019

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