मेरे घर की कच्ची दीवार क्या गिरी,
लोगों ने अपने अपने रस्ते बना लिए।
बहुत दूर तल चलके, कदम यूँ उलझे,
साथ देने वालों ने कंधे हटा लिए।
कुछ ख़्वाबों का धुआं, कुछ हसरत की आग थी
जिसके भी हाथ आई, अपने चूल्हे जला लिए।
इस कदर टूटी, हसीन शीशे सी ज़िन्दगी
किसी ने रंगीं कमरे, किसी ने आंगन सजा लिए।
घर की कच्ची दीवार क्या गिरी ‘बेबाऱ’
लोगों ने अपने अपने रस्ते बना लिए।