Last Rituals- A satire

धड़ाक!! बस ज़ोर की आवाज़ आयी
कानों में एक सीटी का शोर हुआ
मैं छटक कर सड़क किनारे आ
जल्दी से उठ खड़ा हुआ
आह ! शुक्र है मैं बच गया।

फ़िर क्यों ये सड़क पे इतनी
भीड़ जमा हो गई है
आवाज़ आयी, मर गया शायद
शक्ल तो पूरी कुचल गई है।

मैं चौक गया, ये तो मेरी कमीज़ पहना है
पैंट भी मेरी जैसी है,
औऱ घड़ी भी हुबहु ही पहना है
तब समझ आया कि क्यों लोग
मेरे आर पार निकले जा रहे हैं।

कुछ आवाज़ें फिर आयीं,
ये मर गया, पर करना क्या है ?
देख नाम देख, धर्म क्या है इसका?
हिन्दू होगा तो मैं क्रिया कर्म को
शमशान तक ले जाउंगा।
दूजा बोला,
अच्छा तावीज़ देख,
ग़र अल्लाह की देन है
तभी मैं दफ़्नाउंगा।
पर, कोई पर्स नहीं, कार्ड नहीं
सिर्फ़ दो सौ का एक ही नोट है।
बाल भी आजकल काट लेते हैं ये मुंडे सारे
वरना गुरुद्वारा भी अगली गली में है हमारे
एक चश्मिश उचक के बोला
जीसस का टैटू देख,
या क्रॉस पड़ा हो गले में शायद
डेविड क़ब्रिस्तान में जानकार है मेरा
कम पैसे में कर देगा सब घेरा।
पैसा ? सब चिल्लाये
दो सौ में भी नहीं होगा क्या ये काम ??

ओहो, देर हो रही, जल्दी बताओ क्या करना है
छोड़ो! हो सकता है पारसी हो।
हां ! पारसी ही होगा, बिल्कुल।

मैं खड़ा खड़ा सब देख रहा था,
ऊपर वाले से कह रहा था,
इससे अच्छा तो मैं कुत्ता होता
जीते जी किसी का टॉमी
और मरने पे नगर निगम का तो होता।

Spread the love
Menu
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x