फ़ासला रखो

नज़्म का उन्वान : फ़ासला रखो ओ ! मेरे अज़ीज़ो-अकरबा ओ ! मेरे हमनफ़स, मेरे हमदम यक़ीनन अभी ग़मगीं है…
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छुपन-छुपाई

छुपन-छुपाई में देखो कैसे कब से सदियाँ बीत रही हैं दिन छुपता फिरता रातों से रातें छुप-छुपके बीत रही हैं…
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इश्क़ बवाली

जब से तेरी आवाज़ की बाली इन कानों में डाली है मेरे छोटे छोटे ख़्वाबों की नींदों पे बड़ी सवाली…
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मुँह मीठा

दीनू ने जो भी बोया जो भी नुकाया सब एक गठरी में बाँध कंधे पे रख लाया है भरी दुपहरी…
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बड़ी बेआबरू

बड़ी बेआबरू सी है ये ज़िन्दगी, कि जीने का सलीका भी नहीं जानती रहती है ख़ुद क़िताबों में क़ैद हमें…
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क्या सुनाऊँ तुझे

क्या सुनाऊँ तुझे काश ख़ुदा करे, रहूँ जुस्तुजू में तेरी, और फिर न पाऊँ तुझे मगर ये हो नहीं सकता…
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याद और कैलेंडर

एक-एक कर कितनी रातों की राख झड़ गयी, और गिर पड़ीं झुलसी हुई दुपहरी, मानूस शामें। एक-एक कर कितनी सुबहों…
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माँ

गर हारूँ तो दुखी, जीतूँ तो ख़ुशी से रोती है एक अकेली हिम्मत बाँधे, माँ तो माँ होती है दुनिया…
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घर झगड़ा

नक़ली हँसी की कोशिश झूट-मूट जाती है माँ को रोता देखूँ तो किस्मत फूट जाती है घर के पहिये जब…
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ज़मीन – Earth Day

जब बनी थी मैं, तब सजी थी मैं तब तुम्हारी ही अपनी ज़मीं थी मैं एक अरसे से ख़ुदको सँभाले…
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वक़्त का थान

ये कैसा थान है वक़्त का लम्हा लम्हा खोलूँ तो उधड़े उधड़े से रेशे निकल रहे हैं हर-पल “पल” फिसल…
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ताले

लॉकडाउन के दिनों में सड़कें वीरान हैं पंछी हैरान हैं और इंसां है क़ैद न कहीं सैर सपाटा न कदम…
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तलाश हूँ मैं

कायनात की कटोरी से एक बूँद छलकी बूँद जो फ़लक़ के कान में फुसफुसाकर आती हूँ अभी, ये गयी समझाकर…
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ग़रीब की सेहत

रोज़ की सी बात है ऐसी भी न ख़ास है टाल वाली ईंटा भट्टी में कच्ची ईंटा सी पीली है…
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Time Killing

जो ज़्यादा होता है वही जीतता है । जब वक़्त कम था और हम ज़्यादा तो हम वक़्त काट रहे…
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नंगी सड़क

बहुत लद गयी थी सड़क भारी भरकम लिबासों से लिबास जो मुद्दत से धुले न थे गंदे मैले कुचले ट्रक्स…
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ग़लत नज़्म – आरुषि

कुछ अलग करने की चाह में तुमने इक बेमिसाल नज़्म रची थी न लय-बहर न रदीफ़-क़ाफ़िया लफ़्ज़ों का अभाव इब्तिदा…
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सन्नाटा और नींद

कभी कभी मुझे रश्क़ होता है उन लोगों से जो मुँहफट होकर कहते हैं “माफ़ कीजिये, गहरी नींद लग गयी…
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सुर्ख़ चाँद / Red Moon

एक सुर्ख़ चाँद गोद में लिए हुए ईव फ़लक़ से उतरी है तुम्हारी नज़रों में उसकी हिम्मत किरच के जितनी…
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बेबसी, मजबूरी

अपनी ये मजबूरी मैं तुम्हें बताऊँ कैसे फ़िज़ा में ज़ख़्म-ए-दिल दिखाऊँ कैसे घड़ी घड़ी सिसकियाँ, आह ! बेहिसाब और अपना…
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मरना कैसा होगा

जीना तो हो गया जैसे-तैसे सवाल ये है कि ‘मरना’ कैसा होगा बीमारी से ? ठीक वैसे ही जैसे अमीरों…
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आईना

जो बात तमाम सफ़र बताई न गयी वो बात आईने से फिर छुपाई न गयी तेरी ख़ुशबू भी बिखरी रही,…
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ज़हर

रोज़ कतरा कतरा पीता हूँ पोटुओं से छू छू कर; या पी जाता हूँ बटन दबाकर एक ही घूँट में…
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पहले वतन के बेढके

पहले वतन के बेढके बदन को लुकना चाहिए जैसे भी हो ये पीप बहता घाव छुपना चाहिए बह चुका ख़ून…
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बचा लो

वक़्त और रिश्ते इंस्टाफ़िल्टर्स और फ़्रेंडज़ोण्ड के दौर में बचा लो वो माँगी हुई चीनी की कटोरी इन रिश्तों की…
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नाइट शिफ़्ट के बाद

दनदनाते जहाज़ों से कुछ ही घर छोड़कर रहते हैं लोग लोग जो नर्म पोशीदा सुबह में लिपटे हुए सो रहे…
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सुनो, ज़रा ठहर के आना

जो इक वादा था तुमसे, फ़िज़ा में खिलखिलाने का कहकशाँ में डूब जाने का जूड़े में तुम्हारे चाँद टिकाने का…
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