बड़ी बेआबरू

बड़ी बेआबरू

बड़ी बेआबरू सी है ये ज़िन्दगी, कि जीने का सलीका भी नहीं जानती रहती है ख़ुद क़िताबों में क़ैद हमें अपना एक सफ़हा तक नहीं मानती अब कहाँ वो नीम…
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