8 Jul 2020याद और कैलेंडरएक-एक कर कितनी रातों की राख झड़ गयी, और गिर पड़ीं झुलसी हुई दुपहरी, मानूस शामें। एक-एक कर कितनी सुबहों का चूरा गिरता रहा कैलेंडर से, रोज़ झाड़ू से सूखे…